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सनातन आस्था के त्योहारों का मजाक बनाना ठीक नहीं प्री- करवाचौथ का बढ़ता चलन, संस्कृति के लिए घातक

संवाददाता दरबार सिंह

लोकेशन:- सवासरा

सनातन आस्था के त्योहारों का मजाक बनाना ठीक नहीं

  1. प्री- करवाचौथ का बढ़ता चलन, संस्कृति के लिए घात

सुवासरा (निप्र ) पंकज बैरागी सनातन संस्कृति में मनाए जाने वाले हर त्यौहार के पीछे कोई गंभीर रहस्य छुपा होता है। उसके पीछे के तथ्य और तर्को को आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है। हालांकि मै इस बात का दावा तो नहीं कर सकती कि इस व्रत के प्रभाव से पति की उम्र को लंबा किया जा सकता है। किंतु सदियों से सुहागन स्त्रियों की आस्था को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता।

सोशल मीडिया पर लोग मजाक बनाते हैं कि करवाचौथ का व्रत रखने से कहीं पति की आयु बढ़ती है? हां सच में बढ़ती है। वैसे तो यह सच है कि उम्र को कोई घटा- बढ़ा नहीं सकता। परंतु सात्विक और शांत पारिवारिक माहौल में त्यौहारों को मनाने से मनोबल बढ़ता है, शांति मिलती है। तनाव रहित आत्मीयता पूर्ण जितना जीवन गुजरता है, वह हमारे जीवन को आनंदित और सुखमय बनाता है, इसी को आयु बढ़ना कहते हैं।

इस व्रत का मुख्य आधार प्रेम है। इस दिन महिलाएं शुद्ध अंतःकरण से पति की दीर्घायु के लिए पूजन- अर्चन करतीं है। घर में सुखद और अनुकूल वातावरण बनाकर रखतीं है। यह यथार्थ सत्य है,जिसे आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि तनाव मुक्त, शांत तथा प्रेम युक्त माहौल व्यक्ति की उम्र को बढ़ाता है।
हमारी संस्कृति में त्योहारों के पीछे एक रहस्य यह भी छुपा हुआ है कि उस दिन जीवन की आपा धापी से रुक कर परिवार के साथ बेफिक्र बैठकर हर्षोल्लास मनाएं करें। जिससे आने वाले दिनों के लिये तरोताजा और उत्साहित रहें। वर्तमान दौर में त्योहार के पूर्व महिलायें पार्लर जाकर वहां रौनक बढ़ा रहीं है और घर को भरे त्योहार पर बेरौनक कर रहीं।पति पर मन माफिक गिफ्ट के लिए दवाब डालकर अनावश्यक तनाव दे रहीं है। पिछले सालों में व्रत के दिन गृह क्लेश की अनेकों घटनाएं सामने आईं है।

बड़े शहरों में करवाचौथ से एक- दो दिन पूर्व सामूहिक प्री करवाचौथ सेलिब्रेशन के आयोजन हो रहे है। उस दिन पूर्ण साज सज्जा के साथ महिलाएं छलनी में चांद का दीदार भी कर रहीं है। फिर त्योहार के दिन पुनः उसे मनातीं है और अपने पति का दीदार कर व्रत खोलतीं है। क्या यह हमारे त्योहारों का मजाक नहीं है। करवाचौथ हिंदी तिथि के अनुसार मनाया जाने वाला त्योहार है। ऐसे तमाशों से सायद हम अपने तीज त्यौहार ,रीत रिवाजों की मर्यादाओं को धूमिल कर रहे है।

लेखिका- सामाजिक कार्यकर्ता है तथा राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत परामर्शदात्री के रूप में कार्यरत हैं।

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